आज इतने वर्षों बाद तुम्हें देखा | बारिश की बूंदों के बीच सतरंगी इन्द्रधनुष के समान तुमने अचानक से ही मेरे दिल के रंगहीन पटल पर कितने सारे रंग बिखेर दिए थे |पर न जाने क्यूँ ..ये रंग आज कुछ अलग से लग रहे थे | जैसे घाव से बहते हुए रक्त का रंग, जैसे घर को जलाने वाली अग्नि का रंग, जैसे किसी प्यासे के लिए समुद्री पानी का रंग .. जैसे तुम्हारे और मेरे बीच के इन फासलों का रंग | ये कैसा एहसास था ? वैसा तो निश्चित रूप से नहीं था , जैसा मैंने इन 5 सालों में हर पल तुम्हारे बारे में सोचते हुए महसूस किया था| आज जब तुम अनायास ही, बिना किसी पूर्वाभास के इस भीगी सुबह में मुझे दिखी, तो मेरी सारी कल्पनाएँ , इन 5 सालों में इस लम्हे के बनाये हुए सारे चित्र धुंधले होते हुए मालूम पड़े ..उनके सारे रंग झूठे जान पड़े..आखिर ऐसा क्यों हो रहा था ? तुम्हें देख कर मुझे यह कैसा एहसास हो रहा था ? यह प्यार तो नहीं था …
सामने सागर की एक लहर तेज़ी से आगे आकर फिर पीछे की ओर जाने लगी| साथ ही मेरा मन भी पीछे की ओर उड़ने लगा| 5 साल पीछे | जब सब कुछ अलग था| सब कुछ शांत था| ठीक उसी शांत समुद्र की तरह, जिसके किनारे हम दोनों अकसर घंटों बैठे बातें किया करते थे| पर तब कहाँ पता था,कि वह शान्ति तो तूफ़ान की पहले की शांति थी| तूफ़ान तो आया था, पर तब वह विध्वंसक नहीं था, वह तो जूनून था, प्यार का जूनून| मुझे आज भी वह दृश्य आईने में अपने साये के समान स्पष्ट है, जब मैंने तुम्हे पहली बार देखा था| तब भी तुम बारिश में भीग रही थी , ऑटो से बाहर निकलने के बाद अपने बालों से पानी निचोड़ रही थी| हालांकि उस वक्त तुम्हारे बाल अधिक भीगे नहीं थे , परन्तु तुम और तुम्हारी आदतें, इन्हीं पर तो मर मिटा था मैं|
मुझे नहीं पता था कि प्यार क्या होता है , हालाँकि फिल्मों में बहुत देखा था, किताबों में पढ़ा था , और तब तो आस पास भी सभी के लिए एक गर्लफ्रेंड होना फैशन सा बन गया था| पर मैं हमेशा यह सब देखकर संशय में पड़ जाता था| ऐसा नहीं था कि मेरा मन नहीं करता था इन सब का, परन्तु पुनः, मुझे नहीं पता था कि प्यार क्या होता है| क्या मात्र किसी का देखने में अच्छा लगना प्यार है ? क्या किसी से बातें करने में अच्छा लगना प्यार है ? और खुद ही आश्वस्त हुए बिना मैं किसी दूसरे को भला कैसे कुछ वादा कर सकता था| उसकी भी तो कुछ आशाएं , कुछ अपेक्षाएं होती होंगी| भला किसी को झूठी उम्मीदें दिलाना सही होगा क्या? बस यही सब सोच सोच कर मैं हमेशा रह जाता था|
पर तुमसे मिलने के बाद तो ये सब बातें मन में कभी आई ही नहीं| अब सोचता हूँ तो अजीब लगता है, पर यह सच है ,ये सारे सवाल, सारी शंकाएं, उस वक्त, न जाने कहाँ गुम हो गयीं थी| कुछ यदि रहता था तो बस तुम्हारा ख्याल, तुम्हारी बातें| तुम्हारे साथ एक एक पल बिताने के लिए मन कितना आतुर रहता था| तुम्हारी आवाज़ सुनने को हर वक्त कान तरसते थे| रास्ते में चलते हुए यूँ महसूस होता मानो तुम सामने से आ रही हो, पर अगले ही पल सच्चाई का एहसास होते ही मन बुझ सा जाता , और जब तक फिर तुम्हें देख न लेता वैसा ही रहता| और जब हम साथ होते, तो बातों में कैसे वक्त बीत जाता पता ही नहीं चलता| तुम्हारे हाथों को थामे हुए सागर किनारे चलना मानो दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास लगता था| जहाँ मैं पहले प्यार, रिश्ता इन सब शब्दों को सुन कर कुछ समझ नहीं पाता था, वही अब मन हर वक्त तुम्हारे साथ भविष्य के सुनहरे सपने सजाता रहता था| एक निश्चितता सी महसूस होती थी दिल को, जिसमें किसी चिंता या परेशानी की जगह ही नहीं बचती थी| उस दिन जब सागर की लहरों ने जब हम दोनों के बदनों को भिगो दिया था, और ठण्ड से ठिठुरते हुए हम दोनों बाँहों में बाहें डाले हुए वापस लौटे थे, तब मुझे तुम्हारी ओर से भी इस रिश्ते की सहमति सुनाई दी थी| बस फिर क्या था, जिंदगी तो जैसे एक खूबसूरत ख्वाब बन गयी | तुम्हारी बाँहों में तो हर एक पल जैसे जन्नत लगता था| एक सुन्दर भविष्य आगे साफ़ नज़र आ रहा था| घरवालों को भी कोई ऐतराज़ न होना था| होता भी क्यों? पिताजी के बड़े व्यापार का मैं एकलौता वारिस जो था| सो करीब 1 साल के इस सफर के बाद हमारे रिश्ते की परिणति शादी के रूप में तय हो गयी थी| और क्या चाहिए था हमें!
मैंने सुना था कि हर सच्ची प्रेम कहानी का दुखद अंत ही होता है| इससे कम से कम यह तो आश्वासन हुआ कि हमारा प्यार सच्चा था! शादी के एक महीने पूर्व ही हमारे कारोबार में बहुत बड़ा नुकसान हुआ, किसी ने धोखा किया, और एक झटके में ही हम अर्श से फर्श पर आ गए थे| हमारी आर्थिक स्थिति अत्यंत शोचनीय हो गयी थी| इस नयी मुसीबत का सामना करना सीखा नहीं था कि तभी एक दूसरा वज्रपात भी हो गया था| तुम्हारे माता पिता आये थे, और यह रिश्ता तोड़ दिया था| हालाँकि उन्हें हमसे सहानुभूति थी, पर उससे ज्यादा तुम्हारी फ़िक्र थी, और उन्हें मैं इसके लिए दोषी भी नहीं ठहरा सका था| तुमसे मिला था मैं, तुम परेशान थी| हालाँकि तुम्हारी आँखों में मैं अपने लिए प्यार साफ़ देख सकता था| पर तुममे अपने माता पिता का विरोध करने का साहस नहीं था| और सच बताऊँ तो मैं इतना स्वार्थी नहीं बनना चाहता था कि अपनी खुशी के लिए तुम्हे एक अनिश्चित भविष्य के लिए कहता| तुम जहाँ भी रहो खुश रहो, बस यही इच्छा थी मेरी| सो यह सोचकर कि तुम सुख से रहोगी, और मैं मन ही मन तुम्हे सदा के लिए प्रेम करता रहूँगा, हम अलग हो गए थे|
पर आज 5 साल बाद तुम्हें जब वहीँ सागर किनारे देखा, तुम अपनी आलीशान कार से निकल रही थी, अपने बालों से वैसे ही पानी निचोडते हुए, तुम्हारी खुशहाली तुम्हारी वेशभूषा से साफ़ नज़र आ रही थी| शादीशुदा होने के बावजूद तुममे बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया था, पर फिर भी काफी अंतर था| तुम्हारे बड़े बड़े आभूषण, महंगे कपड़े,आलीशान गाड़ी, इन सब से अधिक मुखर थी तुम्हारी खुशी| तुम निश्चित रूप से जिंदगी से अत्यंत प्रसन्न थी| कोई गिला शिकवा नहीं था तुम्हें| एक खुशहाल जिंदगी की चमक तुम्हारे चेहरे पर साफ़ नज़र आ रही थी| पर यह सब देख कर मुझे क्यों बुरा लग रहा था? ऐसा क्यों महसूस हो रहा था कि मैं पिछले कितने वर्षों से एक छलावे में जी रहा था| जिस कल्पना में मैं जी रहा था, वो सब क्या एक भ्रम थी? जिस प्रकार मैं तुम्हे पल पल याद करता था, क्या मैं तुमसे भी वही उम्मीद करता था? यदि नहीं तो फिर आज इस क्रोध, इस द्वेष. इस मलिन भाव का क्या अर्थ था?आज कुछ टूटा हुआ सा महसूस हो रहा था मन में| क्या मेरा प्रेम सच्चा नहीं था ? क्यों तुम्हें खुश देखकर मैं खुश नहीं हुआ? आखिर ये क्या एहसास था? क्या मुझे तुम्हारी खुशहाल जिंदगी से ईर्ष्या हो रही थी? आखिर यह कैसा प्यार था? क्या यही अंतर होता है वास्तविक और काल्पनिक प्यार में? क्या तुम्हारे पास मेरे इन सवालों का कोई जवाब है ?
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