अनजानी सी , कुछ बिसरी सी
यादों के फलक पर , हलकी धूप सी छितरी सी
समय के क़दमों तले गुम जिसे कर आये
यादों की कोमल धरती पर, उस घास सी बिखरी सी
गुम होती सी , फिर आती वो, पल में गायब हो जाती सी ,
यादों के बादल से, रिमझिम कुछ बरसी सी
मंद हवाओं में बहती वो खुशबू
कुछ सोंधी सी , यूं पसरी सी…
तुम..
मन के शांत से दरिया में
एक हलचल सी , कुछ लहरों सी
अनजानी सी , बेगानी सी
कुछ बेवजह तो कुछ बेमानी सी
फिर भी जानी पहचानी सी
सही कभी , कभी गलत
पर हर बार एक नयी कहानी सी
बेचैनी सी , परेशानी सी
ठहराव कभी , कभी रवानी सी ..
तुम…
कल्पना , या फिर ख्वाब सी हो
दूर हो पर क्यों पास सी हो
सर्दी की उस धूप सी हो
या फिर गर्मी की उस आग सी तुम
क्या हो तुम …
सागर की उस प्यास सी ,
या जीने की आखिरी आस सी ,
हर सांस के साथ जो जीता हूँ मैं
या फिर उस एहसास सी…
तुम…
bahut khoob mere bhai. kya mast likha hai. i m proud of my poet brother