उसे कहते क्या थे, यह तो नहीं याद
पर वह जो था एक एहसास,
सुखद , अनायास व अकस्मात
कहीं खो सा गया है |
वह साइकिल के पैडल पर रखे
पैरों में जो तत्परता थी.
नए नए रास्तों पर जाने की
दोस्तों संग जो उत्सुकता थी,
लुका छिपी व ऊंच नीच में
नज़र कभी जो भींच भींच कर ,
पलकों के कोनों से देखने में भी जो एक निश्चलता थी ,
उसे कहते क्या थे यह तो नहीं याद,
था ही क्या , सिर्फ एक एहसास , जिसमें एक सरलता थी
पर अब वो कहीं खो सा गया है |
वह रविवार की सुबह सवेरे
श्री कृष्णा का गोपियों संग रास
दोपहर के १२ बजने का इंतज़ार
जब आती अपने हीरो संग गीता विश्वास
शाम ढले वह चार बजे, अपनी पसंदीदा फिल्म की आस,
हाँ , वह था ही क्या , सिर्फ एक एहसास
पर अब सिर्फ एक याद , एक लंबी गहरी सांस
क्योंकि अब वो कहीं खो सा गया है |
वह नयी चीज़ के आने पर
चेहरे पर आती थी जो मुस्कराहट
वो पहला मोबाइल और उस पर नयी रिंगटोन
नया कंप्यूटर और उस पर की हुई वो सजावट
वो SMS आने की खुशी, और वो पहला डॉट कॉम ,
कुछ भी नहीं था वह, सिर्फ एक एहसास
पर अब महसूस होती है उसकी सिर्फ आहट
हाँ, वो कहीं खो सा गया है |
खोजें कहाँ उसे
था क्या वह, यह भी तो नहीं पता
समय की सादगी , सरलता
या फिर बचपन की मासूमियत भरी अदा,
अब तो बस एक रफ़्तार है , दौड है
समझने, महसूस करने का न वक्त है
हर दिन एक परीक्षा , हर दिन एक होड़ है
गुजर गया है बचपन, या फिर यह वक्त ही सख्त है ?
जो भी हो सच, आता नहीं कुछ ये रास …
पर था ही क्या वह, सिर्फ एक एहसास ,
जोकि अब कहीं खो सा गया है |